Tuesday 6 August 2019

ख्वाब

नन्ही  नन्ही आँखों के वो नन्हे से ख्वाब सुनहरे थे
कुछ बिखरे कुछ सवरे जो भी थे वो थे मेरे अपने थे


नन्हे से घरोंदें में तेरे मेरे ही दिन रात के बसेरे थे
बाग़ में अपने खिलते दो फूलों के प्यारे से घेरे थे
हर रुत में लगते अपने  ही प्यार  के मेले थे


वक़्त का बदला रुख देश में ही कहलाते परदेशी थे
जिनको आती थी शर्म हम पर आज वो मेरे अपने थे
हँसते गाते तंहा अपने ही घरोंदे में ख़ामोशी से रहते थे


एक रोज़ ख़ामोशी को तंज़ दे  परियों से बांते करते थे
वो मेरी रांहे तकते थे हम बेसबब इंतज़ार उनका करते थे
लम्हे सुनहरे ख्वाब रुपहले थे  वो दिन भी कितने अच्छे थे
 
खुशियों से लबरेज़  हवा में हाथों में हाथ लिए उड़ते थे
कुछ गुज़रे दिन की बांते कुछ आने वाले पल के सपने थे
दर्दीले  खट्टे मीठे जीवन के गुज़रे दिन कितने सच्चे थे

$hweta Misra

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