कांटे
रिश्ते दिलों के
क्यूँ दर्द के साए
में पलते हैं
क्यूँ काँटों
पर ही फूल
सुखों के खिलते हैं
क्यूँ तड़प के रह
जाती हैं रूहें
क्यूँ दूर कहीं
जमी आसमा
मिल के भी नही
मिलते हैं
क्यूँ निश्छल
प्रेम भी
रिश्तों में कांटे
बन उभरते हैं
क्यूँ रिश्तों के
सफ़र में
पड़ाव से पहले ही
पावं फिसलते हैं !!
Shweta Misra
ये प्रश्न और शायद है बहुत आसान उत्तर .... क्यों कि यदि सब अच्छा ही हो तो अच्छे की अहमियत कैसे पता चलेगी ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना .
अभिभूत हूँ
ReplyDeleteसादर आभार