हिंदी ने दिल को सँवारा है
जज़्बात के दरिया में हमने
शब्दों को क़रीने से उतारा है
रूह की ख़ुशबू से महका है चमन
गुलों से रंग हमने अपना निखारा है
ज़िंदगी के भँवर में यूँ डूबे हैं हम
मिला है मुझे गीतों और ग़ज़लों में किनारा है
प्रेम की खिलती कलियों में
पुष्प प्रेम मेरा अब तक कवारा है
मंज़िल है क्या ईश चरणों में या
एकांत परिरोध में जीवन का गुज़ारा है
Shweta
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