Thursday 3 July 2014

ये शाम ……!!!

ये शाम ……!!!

ये तन्हा उदास दर्द भरी शाम
अलविदा कहती पत्तों की मुस्कान
कल आने के वादे पर होती सुरमई शाम

हाथ हिलाती अलविदा कहती
ज़ख्म एक नया दे ज़ख्म एक दफ़न करती
इंतज़ार के लम्हे सिलती ये शाम

दर्द के भवर में दर्द के लहर में
अनजाने गम से नाता जोडती या तोडती
रूठती मनाती खामोश लाल रंग लिए मिटती शाम

अनकहे बोलों में हज़ार लफ्ज़ लपेटे
अश्कों की जुबान खामोश लब
ख़ुदा जाने सुना रही कौन सा गीत ये शाम
~ श्वेत ~

शब्द …!!

शब्द …
खिलते
महकते
झिझकते
सिसकते
खिलखिलाते
चलते
ठिठकते
लिरजते
डूबते
निकलते
शब्द में बसा संसार !!!
$hweta

Sunday 29 June 2014

क्यूँ है ????

ये बंधन  जो तोड़े से भी नही टूटते हैं
सपने आसमा के अब आँखों को नही मिलते हैं
बेवजह उपेक्षाओं के शिकार हम ही होते क्यूँ हैं ?????

तुमको राह तो मैंने दिखाया हमे अँधेरे क्यूँ मिलते हैं
मीठी बोली से मुलाकात करवाई ज़हर हमारे हिस्से आते हैं
प्यार की फुहारें बरसायी तुम पर इधर उदासियों का सेहरा बस्ता क्यूँ है ?????
हर मोड़ हर राह पर सवारा तुम्हे फिर बिखराव घर मेरे बसती है
तिनका तिनका जोड़ें जहां बनाये बातें ज़ार ज़ार कर मन तोड़ जाती है
खता क्या हमारी बेवजह सजाएं हमारे दामन चमकती क्यूँ हैं ???
                              ताउम्र बोझ ढोती ये जिंदगी  बोझ ही कहलाती क्यूँ है ??????

                                                                                               ~श्वेता ~