Friday 23 September 2022

नोरा और वो

 एक दशक पहले यूरोप से अफ्रीका जब मेरा आना हुआ तो रुई के फाहे की तरह गिरते बर्फ की जगह यहाँ की ठंडी पुरवाई मेरे मन को लुभाती चली गयी मन हज़ार तरह की आशंकाओं से घिरा था / यूरोप का अत्याधुनिक माहोल और यहाँ के लोग प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर /एअरपोर्ट से बाहर आते ही कुछ दूर आने पर शांत समुन्दर जिसमे कोई भी हलचल नही ,जिसके समुन्दर होने पर मुझे यकीं तो नही हुआ लेकिन मेरे मन में एक खूबसूरत एहसास की तरह ठहर गया /मन तुलनात्मक दृष्टिकोण से हर चीज़ को देख रहा था कभी कोई चीज़ मन में बैठती कोई सिरे से खारिज करती /रास्ते में बड़े बड़े बिभिन्न भांति के पेड़ों से घिरे जंगलों में झांकते आम के बड़े बड़े वृक्ष आश्चर्य से मन को भर रहे थे / आम भी अलग अलग तरह के दिख रहे थे मन कौतुहल से भर उठा और ड्राइवर से पूछा की यह आम का ही पेड़ है या किसी और का ? डाइवर ने स्पष्टिकरन करते हुए एक पेड़ की देखते हुए गाड़ी को किनारे में park कर दी और गाड़ी से उतर कर आम तोड़ के ले आया /आम को हाथ में ले कर मन इतना प्रफुल्लित हुआ कि जैसे किसी अपने बिछड़े परिजन से मिल रही हूँ /यूरोप में 5 यूरो का एक आम और यहाँ जंगल ...कैसा विरोधाभास है प्रकृति पर यह दृश्य प्रत्यक्ष दिख रहा था वास्तव में यूरोप में पेड़ों के नीचे बिछे सेव भी उतना मन को प्रफुल्लित नही कर सके थे जितना अपने देश के फलों के राजा आम ने किया / यूरोप की चकाचौंध पर नैसर्गिक दृश्य हावी होने लगे थे / रास्ते भर ड्राइवर से यहाँ के भाषा और परिवेश की बातें सुनते सुनते 2 घंटे का सफर कैसे कट गया पता ही नही चला और हम अपने रिसोर्ट में आ गये /अब कुछ महीनो का अस्थायी आवास यही था और यहाँ रहते हुए अलग अलग तरह के लोगों से मिलते सुनते यहाँ की संस्कृति काफी करीब से देखने को और समझने को मिलने लगी / यहां के लोगों में भारत और भारतीय सिनेमा के प्रति सम्मान और दीवानगी , फ़िल्मी गानों को गाकर भारतीओं को रिझाने की कोशिशें कभी कभी बड़ी दिलकश भी लगती हैं / इसी बीच इक समारोह में जाने का अवसर मिला जिसमे हम शामिल भी हुए /कई तरह के लोगों से मेल मिलाप भी हुआ / समारोह में नोरा नाम की एक लड़की से भी मुलाक़ात हुई / नोरा सुन्दर मिलनसार व्यक्तित्व की स्वामिनी थी /बातों ही बातो में पता चला की उसे जानवरों से बेहद लगाव है और उसने एक अजगर पाल रखा है और वह उसके साथ सोता खेलता भी है / सुनकर मैं तो एक अनजाने भय से काँप उठी और उससे पूछ बैठी तुम्हे डर नही लगता ?

नोरा कहने लगी वह बहुत प्यारा है और अभी तो बच्चा है घर में इधर उधर घूमता है कभी कभी मैं नींद में रहती हूँ तो बिस्तर में मेरे आ जाता है और मुझ से लिपट जाता है / मुझे बड़ी हैरानी हुई अभी तो अपने देश में गाय भैंस घोडा खरगोश और कुत्ते ही पालतू पशु के रूप में देखा था और मैं उनसे भी डर जाती थी ये कहाँ मैं घने जंगल में आ गयी और ये महारानी तो मुझे मॉडर्न दिख तो रही है पर है अन्दर से भयंकर जंगली /नोरा के लिए उस अजगर से सुन्दर प्यारा और दिल के करीब जितना था उतना तो कोई नही लग रहा था और जब तक साथ थी सिर्फ उसी की बातें ,मुझे ऊब सी लगने लगी थी / किसी तरह हम वहां से निकल अपने रिसोर्ट आ गये / हालाकि रिसोर्ट में भी शुतुरमुर्ग मोर रंग बिरंगे तोते जैसे मन मोहने वाले कुछ जानवर थे / शाम हमारी इन्ही को आस पास घूमते देखते बीत जाती / धीरे-धीरे हम भी यहाँ के माहोल से परिचित हो चुके थे और हमारे अपने आवास में शिफ्ट होने का समय भी नजदीक आ रहा था / लगभग तीन-चार महीने रहने के उपरांत हम अपने आवास में पहुच गये / नोरा भी उसी कैंपस में ही थी लिहाजा अक्सर मुलाक़ात होने लगी और उसके पालतू जानवर की बातें जो मुझे अन्दर से एक डर ही महसूस करवाती उससे सुनती रही /एक दिन मैं अपने बेटे को स्कूल से लेने जा रही थी कि नोरा मिल गयी पूछने पर पता चला कि हॉस्पिटल जा रही है उसका पालतू हफ्ते भर से खाना नही खा रहा है और अक्सर उससे कुछ ज्यादा ही लिपट रहा है / नोरा को उसके भूखे रहने से उसके मर जाने की आशंका ने घेर रखा था /खैर नोरा उसको लेकर जब डॉक्टर के पास पहुची तो डॉक्टर ने गहन जांच की जिसमे कुछ न पाया /डॉक्टर का अब अगला सवाल नोरा से था 'क्या यह आपको लिपटता है ?' नोरा ने बड़ी खुशी से जबाब हाँ में दिया और यह भी बताया की कभी कभी इतनी जोर से लिपटा रहता है कि उससे छुड़ाना भी थोडा मुश्किल होता है / डॉक्टर चुपचाप सुनते रहे ,नोरा की सारी बातें सुनने के बाद एक गहरी साँस लेते हुए डॉक्टर ने कहा ,''यह आपको निगलना चाहता है और जब आप से लिपटता है तो आपसे लाड प्यार में नही बल्कि आपकी माप लेता है कि आपको निगलने के लिए उसके पेट में कितनी जगह होनी चाहिए और अब यह बड़ा हो गया है तो अपनी पेट में जगह बना रहा है भूखे रह कर '' यह सुनकर नोरा के होश उड़ गये उसे समझ ही नही आया की करे तो क्या करे ,जिसे वो इतना लाड प्यार दे रही है वही उसकी मौत है और मौत भला किसको प्यारी लगती है /नोरा हास्पिटल से सीधे जंगल की ओर चली गयी और उसे ले जाकर जंगल के बाहर छोड़ आई पर उसके मन में डर ने घर कर लिया, उसने किसी भी जानवर को पालतू न रखने की कसम खा ली और मैंने राहत की साँस क्युकि अब मुझे उसके खतरनाक पालतू के बारे में नही सुनना पड़ेगा और जिसकी वजह से मैं उसके घर में भी पैर रखने से डरती थी आसानी से आ जा सकुंगी /
~Shweta Misra

Tuesday 13 July 2021

माँ को श्रधांजलि



अंजुली में तिल जल
नयन मेरे ठहर जाते
आकृति तुम्हारी उभरती है
होंठों पर हल्की मुस्कान
कजरारे नयनों में
वही चमक सी दिखती है
मानो मुझको देख रही
दिल में एक हूक सी उठती है
तर्पण को ज्यों जल गिरता है
बिछड़न धुआँ सा पल भर को उमड़ती है
स्नेह तेरा मेरी आँखों से नेह बादल सी बरसती है
यादों की बदली उमड़ घुमड़ दिन रैन उजाला करती है
तुम अब ना आओगी सोच जिया में बर्फ़ सी जमती है
तर्पण का जल धरती मां बन ले लेती है
पल भर को ज़मी से लिपट
तेरी आलिंगन को हृदय द्रवित होती है
परलोक में तुम देना स्नेह अपना
मंत्रों में यही भाव और मन में यही संकल्प
लिए फूलों संग सामग्री में
तुम्हारी अंश तुम्हें समर्पित करती है !!!
~ Shweta

Thursday 13 May 2021

पता है





पता है मुझे यूँ चुप रहकर तुम
ये खामोशियाँ हमे ही सुनाते हो ना तुम
बहुत बोलते हो ना जब बोलते नही हो तुम
यूँ तोड़कर ताल्लुक़ हमसे रोज़ हमे ही पढ़ते हो ना तुम
लिखा तो नही है कुछ भी न जाहिर फिर भी
अपना नाम समझ ही जाते हो ना तुम
बेहद बेइंतिहा बेवजह ही हो ना तुम
Shweta

Friday 7 May 2021

लिखना


दिल की हर एक गिरह लिखना
मुझको ख़त आज बेवजह लिखना
हिज़्र की रात बहुत लंबी गुज़री
वस्ल की अब तो एक सुबह लिखना
ज़ब्त कर रखी हैं तुमने मेरी वफ़ाएँ
माज़ी का कोई एक गुनाह तो लिखना
जो कहते हैं गर इसको मुहब्बत
तो मेरी मुहब्बत में मुझे गुमनाम लिखना
दिल में दफ़्न कर रखी हैं हमने खवाईशें कई
मेरी फ़ातिहा में मेरी क़ब्र पर एक अपनी ग़ज़ल लिखना

$hweta

Friday 23 April 2021

ख़ुशबू






उर्दू ने मुझे पुकारा है
हिंदी ने दिल को सँवारा है
जज़्बात के दरिया में हमने
शब्दों को क़रीने से उतारा है

रूह की ख़ुशबू से महका है चमन
गुलों से रंग हमने अपना निखारा है
ज़िंदगी के भँवर में यूँ डूबे हैं हम
मिला है मुझे गीतों और ग़ज़लों में किनारा है

प्रेम की खिलती कलियों में
पुष्प प्रेम मेरा अब तक कवारा है
मंज़िल है क्या ईश चरणों में या
एकांत परिरोध में जीवन का गुज़ारा है

Shweta

Monday 19 April 2021

वो अफ़साना

''वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
..........उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा''

कई बार हर रिश्ते से पवित्र और सुखद दोस्ती का रिश्ता भी बिछड़ कर मिल ही जाता है , और ईश्वर कब कहाँ और कैसे इसकी रंगों के परत को उड़ा और कब कहाँ भर देता है इसका किसी को पता भी नही चलता है । एक दशक पहले जब सोशल साइट्स पर लोग जुड़ना शुरू किए थे तो लोग अपने परिवार के सदस्य मित्र और जान पहचान वालों की भी ख़ूब तलाश करते थे ।यह मायावी दुनिया किसी तिलिस्म से कम ना थी ।लोगों में दोस्ती करने की भी बड़ी ललक थी ।कोई मिल जाता तो बड़े हाल चाल पूछे जाते ।कहाँ से हो?... कैसे हो ??..किसको जानते हो ?? जैसे अनगिनत सवाल ।
आर्वी चेक रिपब्लिक में रहती थी तो फ़ेसबुक ट्विटर और ब्लॉग जैसे सोशल साइट्स पर ऐक्टिव भी रहती थी ।उसे लिखने का शौक़ था तो अपने विचार ऐसे माध्यम से व्यक्त भी किया करती थी ।लिखना उसका अपना शौक़ था और वह फ़ैशन की दुनिया में कार्यरत थी ।कभी रंगों के ताल-मेल के साथ शब्दों की भी अच्छा तालमेल कर जाती तो सभी चकित से रह जाते ।वह हिंदी और आंग्ल भाषा दोनो ही में बहुत ही अच्छा लिखती थी , उसकी दोनो ही भाषाओं पर अद्भुत पकड़ थी ।
अच्छा लेखन उसका फ़ेसबुक मित्र संख्या चार हज़ार के पार कर गयी सभी पढ़ते उसे ।उसी पाठक में एक पाठक था आरव रंजन ।उसके पोस्ट पर आरव ने अपने विचार रखे तो आर्वी धन्यवाद कह निकल गयी । दो तीन दिन बाद आरव का संदेश इनबॉक्स में भी पहुँच गया ।आर्वी ने हल्के से जबाब दिया और अपने काम में व्यस्त हो गयी ।सप्ताहंत और बर्फ़ भी बहुत गिर रही थी तो आज आउटिंग का कार्यक्रम स्थगित कर लैपटॉप ले कर बैठ गयी , कुछ ऑफ़िस के काम निपटा लिए फिर ट्विटर हैंडल पर ट्वीट किया और अब फ़ेसबूक पर status अपडेट करते ही कई विचारों की टिप्पडी की बरसात सी हो पड़ी ।शायरी का जबाब शायरी बहुत ही शायराना सा महोल बन गया और ख़ूब लिखती ही जा रही थी ।आरव का भी कई विचारों द्वारा आदान प्रदान हुआ ।आरव भी अच्छा लिख रहा था ,पर आर्वी अपनी धुन में थी ।
आरव साधारण सा पारिवारिक नेक दिल इंसान था और बातें करने को बेचैन भी रहता था। आरव ने आर्वी को संदेश भेजे लेकिन आदतन आर्वी ने उधर ध्यान नही दिया लेकिन जब वह खाली हुई तो उसने संदेश को देखा उसका जबाब दिया।आरव ने उससे दोस्ती की बात की, आर्वी के जबाब से संतुष्ट आरव ने उसे अपनी छोटी बहन बनने का आग्रह कर डाला, आर्वी का किसी भी रिश्ते पर कभी भी बहुत विश्वास नही था लिहाज़ा वह टाल गयी,लेकिन आरव अब जब बात करता आर्वी को कहता वह कितनी प्यारी है अगर उसकी कोई छोटी बहन होती तो बिलकुल उसी की तरह होती,आर्वी बातों को हंस कर टाल जाती।
आज सुबह जब आर्वी ने अपना फ़ेसबुक खोला उसने देखा आरव किसी रूप नाम की लड़की के status पर टिप्पडी में व्यस्त था,टिप्पडी में तारीफ़ पर तारीफ़,रूप भी हाज़िर जबाब हुए जा रही थी,अच्छी जुगलबंदी बनती दिख रही थी,यह सिलसिला अब अक्सर ही देखने को मिलने लगा था पर कुछ दिनो से ऐसा कुछ नही दिखा, इधर जब शायद आरव रंजन को रूप नही मिलती तो आर्वी से बातें करते और बातों में हज़ार सवाल करता कभी अपनी इच्छाओं कभी अपनी जीवनसगिनी कभी कुछ ऐसी बातें आर्वी से करता रहता था, आर्वी कभी कभी जबाब दे देती और कभी दो चार जबाब देकर फ़ेस बुक ही बंद कर चली जाती, इस तरह दोनो बातें तो करने लगे थे। आर्वी की तरह अब तक आरव की कई बहने फ़ेस बुक पर बन चुकी थीं।कुछ ही समय बाद फ़ेसबुक पर लिखने वालों ने किताब छपवा कर लेखक/लेखिका बन रहे थे।कवि सम्मेलन कर बड़े कवि और कवित्री के तमग़े से ख़ुद को नवाजे जा रहे थे।
शायद रूप भी अब बड़ी कवित्री के ओहदे को उठा चुकी थी वह विरासत में मिली हुई प्रतिभा को संभाल रही थी, लिहाज़ा आज आरव रंजन को रूप की ओर से बहुत तवज्जो नही मिल रही थी, आज आरव थोड़ा चिड़चिड़ा सा था और उसके पोस्ट पर कुछ तंज भरे लहजे में टिप्पडी लिखी थी, जिसे आर्वी ने पढ़ा और मुस्कुराकर मामले को समझ आगे बढ़ गयी।
आज आरव रंजन ने दो लाइन आर्वी से बातें करते करते लिखी ----

''हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे''

आर्वी ने सोचा आरव ने यूँ ही लिखा दिया होगा शायद उसने कोई शायर को पढ़ लिया होगा।अब इस तरह कभी कभी आर्वी को आरव कभी दो कभी चार कभी कविता लिख भेजी, लगभग दो तीन सालों का साथ फ़ेसबुक पर दोनो का हो ही चुका था।एक दिन बात ही बात ने आर्वी ने कहा, '' इन बातों का क्या मतलब है मैं तो सिर्फ़ आप से बात कर लेती हूँ जस्ट लाइक अ फ़्रेंड ?आरव के स्वर कुछ तल्ख़ से हो उठे,उसने आर्वी से कहा फ़ालतू बातें ना करो आर्वी, '' तुम इतनी अच्छी हो सुंदर हो, वो बातें पुरानी हो चुकी हैं भूल जाओ उसे । इससे आर्वी को लगा कि आरव ने उसे कुछ ज़्यादा ही सोच रखा और अपने मन में कोई अलग ही जगह बना चुका है लेकिन कभी कभी आरव रंजन की बातें आर्वी को अटपटी सी लगती ।आर्वी की अपनी ज़िंदगी थी एक ख़ूबसूरत सा अच्छे पद पर कार्यरत स्मार्ट और उससे बेइंतहा प्यार करने वाला पति उसके सुंदर से प्यारे छोटे बच्चे ।एक अजनबी की रुहानी प्यार की बातें उसे बहुत लुभा नही पाती ,इधर उधर की बातें तक तो ठीक रहता था पर जैसे ही आरव आर्वी की तारीफ़ में कुछ लिखता ,उसे ऊब सी हो आती और आर्वी फ़ेसबुक बंद करके चली जाती । आज फिर आरव ने उसे सुंदरता की तारीफ़ करती हुई शायरी लिख भेजी,आज आर्वी भी उसकी इस बात को टोकते हुए बोली, '' आरव रंजन जी जब आपने दोस्ती की थी तो मुझे अपनी छोटी बहन कहा था न, तो फिर ये सब क्या है??
आरव के स्वर पहले ही तल्ख़ थे और आर्वी को लिखा तुम फ़ालतू बातें ना किया करो , वो बीती बातें हुईं, तुम इतनी ख़ूबसूरत हो.......ब्लाह...ब्लाह....ब्लाह
आर्वी ने अपना फ़ेसबुक बंद कर अपने काम में लग गयी ,फ़ुर्सत मिलने पर सोचने लगी क्या वास्तव में रिश्तों का कोई मोल नही या ज़रूरत के हिसाब से रिश्ते भी बनाए और सम्भाले जाते हैं । ख़ैर.......
आर्वी अब बातें बहुत ही कम करती इधर आरव और रूप सभी अपने अपने काम के सिलसिले में व्यस्त रहने लगे सभी आगे बढ़ते जा रहे थे । आर्वी भी धीरे धीरे सारी बातें समझ चुकी थी।इसी बीच आर्वी की माँ के अचानक निधन से आर्वी बुरी तरह टूट गयी।वह पूरी तरह अवसाद में चली गयी वह कई दिनो तक अस्पताल में रही अकस्सर अपनी माँ को याद करते करते बेहोश हो जाया करती थी, आर्वी के घर वालों को आर्वी को खोने का डॉक्टर सताने लगा था लेकिन डॉक्टरों के प्रयास ने आर्वी को काफ़ी हद तक ठीक कर दिया लेकिन हिदायत दी कि किसी तरह बात जिसे आर्वी के दिमाग़ पर असर डाले उससे आर्वी को दूर ही रखा जाय।
आर्वी ने अब आपने काम से पूरी तरह से दरकिनारा कर लिया।अब उसके पास पति बच्चे और ख़ुद उसका स्वास्थ्य ,जिसे सम्भालने में उसका पूरा समय निकल जाता।कभी कभी वह फ़ेसबुक खोलती उस पर उसने अपनी माँ की याद में पोस्ट डाली थी सामने आ जाती वह फिर बेचैन हो उठती।
लेकिन इधर कभी कभी आरव रंजन आर्वी से बातें करता और उस भारी समय में उसे दिलासे देता एक सच्चे और अच्छे मित्र की तरह।आर्वी को उससे हिम्मत मिलती थोड़ा दिमाग़ में भी माँ की लिखी बातों से पृथकता मिलती।लगभग साल बीत गया,समय ऐसे ही चलता रहता।आरव रंजन अपनी आदत की तरह उसे शायरी ग़ज़ल लिख भेजते लेकिन अब आर्वी असहज महसूस करती लिहाज़ा आर्वी आरव की इस आदत से बहुत ही जल्दी ऊब सी महसूस करने लगी थी और हर चीज़ आर्वी को जैसे तकलीफ़ ही दे रही थी आर्वी अपने ही हालात के आगे विवश थी और एक दिन उसने अपने फ़ेसबुक अकाउंट को ही हमेशा के लिए बंद कर दिया उसे बड़ा ही सुकून सा महसूस होने लगा लिहाज़ा उसे अपना यह निर्णय उचित लगा ।

लगभग दो साल बीतने के पश्चात आर्वी ने एक नया अकाउंट अपने दूसरे नाम 'आशि 'और तस्वीर के साथ बनायी और अब लिखने का सिलसिला फिर से शुरू किया, नए फ़्रेंड लिस्ट के साथ लिखने का नया कलेवर थोड़ा सुकून सा देने लगा था।परिस्थियों ने उसे और गम्भीर भी बना दिया था लिहाज़ा आर्वी की लेखनी समय की धार से और पैनी हो चली थी ।आर्वी किसी ग्रूप में कुछ लिखी थी उसपर कई लोगों के टिप्पडी से पोस्ट की रौनक़ कई दिनो से बढ़ रही थी ।आरव के भी उस पर कुछ शब्दों के फूल सजे गए थे ।आरव रंजन, आर्वी का हाथ माउस पर ही था उसने नाम पर क्लिक कर दिया ।
दो दिन बाद आरव की फ़्रेंड रिक्वेस्ट आर्वी के पास आ पहुँची ,आर्वी ने सोचा मित्र सूची में जोडू या न जोड़ूँ , इसी सोच में ही कन्फ़र्म बटन दब गया ।मित्र हो जाने के बाद आर्वी आरव की टाइमलाइन तक जा पहुँची ।उसने आरव की कलमकारी भी देखी पर अब आरव वैसा नही था । आरव की बहुत सी लिखी बातें आर्वी को दुखी कर गयी, आर्वी कोमल हृदय की लड़की थी शब्दों की बारीकी बख़ूबी समझती थी ।आरव ने हेलो लिखा । फिर इन बॉक्स , ये जनाब सुधरे नही आजतक कह मन ही मन आर्वी मुस्कुराई ।और जबाब भी दे दिया ।थोड़ी सी बातें हुई और आर्वी चली गयी ।
आदतन आरव आर्वी से अक्सर संदेश का आदान प्रदान करने लगा । दो तीन दिन आरव का कोई संदेश ना देख आर्वी को भी थोड़ी चिंता सी हुई आर्वी ने आरव से कारण जाने के लिए संदेश लिख भेजे । जबाब में आरव ने अपनी तबियत ख़राब की बात बताई और बातों ही बातों में आरव काफ़ी बातें भी कह गया ।आर्वी जाने अनजाने स्वयं को थोडी सी दोषी मान बैठी, आर्वी को लगा कि उसके माँ की निधन के बाद आरव उसको अकस्सर बातों से दिलासे देता था उसका मन इधर उधर बहल भी जाता था कभी नयी नयी शायरी कभी कुछ सवाल जैसे उस राह से उसे अलग ले जा रहे थे शायद समय आर्वी के अनुकूल हो रहा था, वजह जो भी रही हो।
आर्वी मन ही मन सोचने लगी आरव एक नेकदिल इंसान है ।शायद कहीं उसके दिल में भी एक दोस्त की कमी है जिससे वह खुल के बात कर सके ।पारिवारिक समस्याएँ टूटे सपनो को फीका रंग उसके सेहत पर साफ़ नज़र आ रहा था । आर्वी एक मनोविज्ञान की छात्रा रह चुकी थी लिहाज़ा उसका देखने का नज़रिया भी अलग था एक मनोचिकित्सक सी हर बात को समझ मानवता के धागे से आरव की समस्याओं को दूर करने की ठान ली जाने अनजाने उसने अपने ऊपर आरव रंजन के एहसान को एक दोस्त की तरह उतारना भी चाहती थी इसलिए उससे बंध गयी ।आरव अपनी सपनिली दुनिया में ख़ुश था । आज उसका जन्मदिन था और शायद आज पहले वह इतना ख़ुश कभी ना था ।आर्वी ने भी अपने बचपन का दोस्त इन दिनो में खो दिया था तो आरव में वह अपना वही दोस्त देख उसके साथ हो ली थी और उसे उसको उदास देखना अच्छा नही लगता था ।आज उसके जन्मदिन पर आर्वी ने शब्दों के गुलदस्ते और दोस्ती का साथ निभाने की वादे के साथ ढेरों शुभकामनाएँ भी दी ।आरव और आर्वी उस समय एक सच्ची दोस्त बन गये थे ।आरव का स्वास्थ्य भी अब सुधरने लगा था और आरव अब ख़ुश भी रहता था उसकी इसी ख़ुशी को देख आर्वी भी ख़ुश हो जाती थी ।
आर्वी हमेशा कहती ,
''हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा वही खुदा देगा !!
लेकिन समय हमेशा एक सा नही रहता। आरव रंजन अपनी आदत के अनुसार आर्वी को एक कविता लिख भेजी।आर्वी ने अपना नाम तो बदल दिया था जिससे आरव रंजन उसे आर्वी नही समझ रहा था अब वह आशि थी।

जहाँ पर "रूप" छाया है
समझ लो तेरा साया है
वहाँ पर गम पराया है
वहीं सुख शांति होती है ।। रंजन

आर्वी/आशि ने कविता पढ़ते ही आरव से पूछा 'रूप' आपकी पत्नी का नाम है जिन्हें आप कोट कर लिखते हैं,अन्दाज़ क़ाबिले तारीफ़ है आपका। आरव ने सफ़ाई देते हुए कहा नही ये मेरी पत्नी का नाम नही यह मेरी काल्पनिक प्रेमिका है जिसका नाम अक्सर मेरी रचनाओं में होता है।आर्वी को समझते देर ना लगी ये रूप है कौन।सब कुछ जानते हुए भी आर्वी अनजान ही बनी रही।बातों ही बातों आरव रंजन ने आशि से आर्वी की बात भी कह डाली,कहा जहाँ से तुम हो वही से आर्वी थी क्या तुम आर्वी को जानती हो?
आशि ने आर्वी को ना जांनने की बात कही और सवाल करते हुए कहा कि क्या आर्वी आपकी कुछ ख़ास लगती थी क्या??
आरव रंजन ने इंकार करते हुए कहा कि, नही वह एक अच्छी लड़की थी बस ।
और बहुत अच्छा लिखती थी पर उसकी माँ के निधन के बाद उसे ना जाने क्या हुआ और वह फ़ेसबुक से अचानक ग़ायब हो गयी थी, बस कभी कभी उसकी फ़िक्र होती है।
आशि ने बात को टालते हुए बातों का रूख दूसरी ओर मोड़ दिया।
इस तरह बातों का सिलसिला तो चलता रहा।आरव रंजन का जन्मदिन आया तोहफ़े में आशि से एक अनोखा तोहफ़ा माँगा, आशि ने सहर्ष स्वीकार करते हुए एक कहानी में अपने विचारों को पिरोकर उसे तोहफ़े में दे दिया।
आरव रंजन ने आशि की लिखने के तौर तरीक़े से बहुत प्रभावित होते हुए उसे किताब छपवाने का प्रस्ताव दे डाला हालाँकि आरव ने आर्वी को भी यह प्रस्ताव दे रखा था पर आर्वी ने कभी भी कोई उत्साह नही दिखाया।इस बार कहानी की किताब की बात थी और आशि ने आरव रंजन की बात को रखते हुए उस पर पूरा विश्वास करते हुए किताब के लिए हाँ कह दिया । आशि अपनी कहानी को समेटने और उन्हें क़रीने से करने में जुट गयी अब आशि और आरव के बीच बात का ज़रिया किताब ही रहता, इस बात में कहीं आशि को लगने लगा था की उसकी कोई किताब नही छप सकती, यह बात उसने आरव रंजन से भी कही। आरव ने कहा तुम मुझ पर सारी बातें छोड़ दो।बातें बढ़ने लगी चैट और फ़ोन दोनो से दोनो बातें करने लगे और इसी बीच आरव ने अपने प्यार का इज़हार भी आशि से कर दिया लेकिन आशि ने कहा आरव जी हम एक अच्छे दोस्त है और हमेशा रहेंगे और मैंने आपको एक दोस्त के अलावा किसी और नज़र से नही देखा मेरे मन में आपके लिए बहुत इज़्ज़त है पर........
इसी बीच आशि ने भी अपनी सच्चाई बताते हुए कहा की वही आर्वी है और बोली मैं आपसे आपका प्यार का हक़ भी छीन रही हूँ........
आरव रंजन ने आर्वी से कहा तुम मेरी आदत हो....
आशि आर्वी बोली आरव जी आदतें समय के साथ बदल जाती है इसलिए मुझे ऐसे ना कहो आप....
आरव ने कहा मेरी आदत कभी नही बदलती......
समय गुज़रता रहा किताब में रिश्ते उलझ गये और रिश्ते की डोर खिच सी गयी....
आरव समय के साथ बदल गया....
आर्वी स्वाभिमानी और कर्मठ लड़की तो थी ही पर दिल की बहुत नाज़ुक और सीधी सच्ची लड़की थी...उससे आरव का रुखा और बदला व्यवहार समझ नही आ रहा था।
वह कारण जाने के लिए आरव को फ़ोन और संदेश देती अब आरव उसे अनदेखा करने लगा था।एक दिन आर्वी ने देखा आरव रंजन रूप की पोस्ट पर अपनी दुआएँ दिए जा रहा था अब यह बार बार होने लगा।अब आर्वी को सारी बात साफ़ साफ़ समझ आ गयी थी। शायद आर्वी की वह दुआ जो उसने आरव रंजन को दी थी कि मैं दुआ करूँगी की आपका प्यार आपको मिल जाय शायद खुदा के यहाँ क़ुबूल हो गयी थी। आरव रंजन की रूप उसे मिल गयी थी।आर्वी ने यह सब देख समझ कर अपने क़दम पीछे कर लिए और अब आरव रंजन को कभी ना परेशान करने के वादे के साथ आपना रूख पीछे की ओर मोड़ लिया था ।
आरव रंजन ने आर्वी को साहिर बना दिया था आशि ने दिल ही दिल में उसके किए के लिए शुक्रिया कहते हुए उससे दूर होने का फ़ैसला ले लिया।
आर्वी कहती थी कि-----
''वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा.............''
आर्वी को वही छोड़ आशि कहीं आगे निकलने के लिए अपने क़दम बढा दिए थे ।

Shweta Misra