Friday 13 March 2015

सपने ......


पौ भूटते सपने नए
जगा जाती है
साँझ ढले जो
दुबक कर किसी
तकिये तले जो सो जाती है
आहाट जगाती चिड़ियों की
चहचहाहट स्वर्ण रश्मियाँ
हरे दूब पर पावं पसारे
नए रंग भर जाती हैं
पेड़ों से लिपट चांदनी
अलविदा कह जाती है
सुर्ख होती है हरियाली
नए जोश नए उमंग से
दिन पल्लवित कर जाती है
ओस की झिलमिलाहट में
जीवन सादगी उतर आती है
Shweta